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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

krishak samaj ki pramukh visheshta कृषक समाज की प्रमुख विशेषताएं

krishak samaj ki pramukh visheshta कृषक समाज की प्रमुख विशेषताएं   कृषक समाज की अवधारणा का अर्थ -                                                     कृषक समाज की संकल्पना को एक अवधारणा के रूप में सबसे पहले विकसित करने का श्रेय मेनटया राबर्ट रेडफील्ड को है।   में उन्होंने मेक्सिको देश के टेपोजलान (tepoztlon) नामक एक ग्राम में कृष्ण समुदाय का अध्ययन किया और एक आधुनिक मानवशास्त्रीय प्रविधि के अनुसार कृषक समुदाय की अवधारणा को प्रस्तुत किया। रेडफ़ील्ड ने 'कृषक' शब्द को इन शब्दों में प्रस्तुत किया है जैसे कि मेरा विचार है कृष्ण में उन लोगों का ही समावेश किया जाना चाहिए जो कम से कम इस बात में समान है कि कृषि उनकी आजीविका का साधन और जीवन विघि है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कृषक उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसे किसी भी भूखंड का स्वामित्व प्राप्त होता है और उस भूमि से उसका नाम भावनात्मक लगाव होता है हम कृषक समाज की अवधारणा का अर्थ स्पष्ट करेंगे। परिभाषाए...

थर्स्टीन वेबलनी के ' दृष्टि आर्कषण उपभोग के नियम tharstin vebalni ke Drashti akarshan upbhog ke niyam

  थर्स्टीन वेबलनी के   '   दृष्टि    आर्कषण उपभोग के नियम    '               '  दृष्टि   आर्कषण उपभोग   के नियम    '            यह नियम उस   पद्धति की   ओर संकेत करता है।   जिसके अनुसार   धनी   विलासी-वर्ग दूसरों को दिखाने के लिए अपने धन की आवश्यकता से अधिक खर्च करते हैं।   इस प्रकार का खर्च धन अपव्यय या बर्बादी ही होता है। कुछ भी हो , धनी विलासी-वर्ग अपने धन का प्रदर्शन भोजन , पोशाक  , निवास स्थान ,  फर्नीचर आदि पर अधिकाधिक व्यय और उनके आवश्यक उपभोग के दूब करते हैं।   इस प्रकार का उपभोग दूसरों की   दृष्टि   को आकर्षित करता है और उसका परिणाम यह होता है कि दूसरों की निगाहों में इस प्रकार का उपभोग करने वालों की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।   दृष्टि  – आकर्षक उपभोग का एक प्रधान   उद्देश्य   अपने सम्मान को बढ़ाना होता है।   मनमानी वस्तुओं का उपभोग स्वयं ही सम्मान ...