krishak samaj ki pramukh visheshta
कृषक समाज की प्रमुख विशेषताएं
कृषक समाज की अवधारणा का अर्थ -
कृषक समाज की संकल्पना को एक अवधारणा के रूप में सबसे पहले विकसित करने का श्रेय मेनटया राबर्ट रेडफील्ड को है।
में उन्होंने मेक्सिको देश के टेपोजलान (tepoztlon) नामक एक ग्राम में कृष्ण समुदाय का अध्ययन किया और एक आधुनिक मानवशास्त्रीय प्रविधि के अनुसार कृषक समुदाय की अवधारणा को प्रस्तुत किया।
रेडफ़ील्ड ने 'कृषक' शब्द को इन शब्दों में प्रस्तुत किया है जैसे कि मेरा विचार है कृष्ण में उन लोगों का ही समावेश किया जाना चाहिए जो कम से कम इस बात में समान है कि कृषि उनकी आजीविका का साधन और जीवन विघि है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कृषक उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसे किसी भी भूखंड का स्वामित्व प्राप्त होता है और उस भूमि से उसका नाम भावनात्मक लगाव होता है हम कृषक समाज की अवधारणा का अर्थ स्पष्ट करेंगे।
परिभाषाएँ -
* रेमंड फर्थ के शब्दों में - "लघु उत्पादकों का वह समाज जो कि सिर्फ अपने निर्वाचन के लिए ही खेती करता है, कृषक समाज ने कहा है।
* रेडफिल्ड के अनुसार - कृषक समाज से अभिप्राय उन ग्रामों से है जो जीवन निर्वाह के लिए भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते हैं और उसे जोतते हैं, कृषि जिनके जीवन का एक ढंग है, व जो ग्रामीण उन नगरीय लोगों की ओर देखते हैं और उनसे प्रभावित होते हैं होते हैं, जिनके जीवन का ढंग उन्हीं के समान होते हैं उनमें भी कुछ अधिक सभ्य होता है।
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि कृषक समाज को परिभाषित करते हुए रॉबर्ट रेडफील्ड ने दो महत्वपूर्ण तत्वों को स्पष्ट किया है-
1. ग्रामीणों ग्रामीणों के जीवन निर्वाह का ढंग,
2. अन्य स्तर के लोगो के साथ उनके संबंधों की प्रकृति।
कृषक समाज की विशेषताए
1 प्रकृति से समीपता - कृषि या ग्रामीण समाज की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता प्रकृति के साथ समीप्य का होना है। कृषक समुदाय के दैनिक कार्य प्रकृति द्वारा प्रभावित होते हैं।
2. कृषक व्यवसाय - कृषक समुदाय के जीवनयापन का प्रावधान है। कृषि की उपज के द्वारा लोगों का जीवन यापन होता है। दूसरे शब्दों में भूमि के साथ प्रत्यक्ष संबंध ही कृषक समुदाय की विशेषता है। भारत में जनसंख्या का करीब 81% कृषि पर निर्भर है।
3. व्यावसायिक समानता - समुदाय के सभी सदस्यों का व्यवसाय प्राय: समान होता है। प्राय: सभी व्यक्ति खेती द्वारा जीवन यापन करते हैं अन्य व्यवसाय भी अपनाये हैं, पर मुख्य व्यवसाय कृषि ही है।
4 . विशेष का अभाव - कृषक समुदाय में विशेष कारण का अभाव पाया जाता हैं। जरूरत कि सभी वस्तुओ का उत्पादन किया जाता है। इस उत्पादन कि विधियों पीढ़ियों से एक ही चली आई है।
5. समुदाय का सीमित आकार - कृषक समुदाय का आकार सीमित होता है। जनसंख्या का घनत्व बहुत कम होता है। हर समुदाय अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य समुदायों पर बहुत कम निर्भर रहता हैं।
6. जनसंख्या का कम घनत्व - कृषक समुदाय में जनसंख्या का घनत्व नगरों की तुलना में बहुत कम होता है। जनसंख्या के घनत्व की कमी से एक तरफ गांव के निवासियों की जीवनधारा प्रभावित होती हैं।
भारत में कृषक समाज की संकल्पना की उपयुक्तता
अब हम देखेंगे कि राबर्ट रेडफिल्ड के विचारो के सन्दर्भ में भारतीय परिस्थितियो में कृषक समाज की अवधारणा कहां तक उपयुक्त है।
रेडफिल्ड के विचारो के आधार पर कृषक समाज की अवधारणा को भारत में लागू कर सकना बहुत ही संदेहपूर्ण है। भारतीय परिस्थितियों के मूल्यांकन से जाना जा सकता है-
1 . रेडफिल्ड ने कृषक समाज को समरूप समुदाय नहीं कहा है लेकिन भारत में कृषक कृषक समाज को एक स्वरूप समुदय नहीं कहा जा सकता। यहां एक ही गांव में विभिन्न जातियों, धर्मो तथा मान्यताओं के व्यक्ति साथ साथ रहते हैं। कई खेती करते है जबकि कुछ व्यक्ति भूमि के स्वामी होते हुए भी खेती नहीं जोतते। वहीं अनेक दूसरे व्यक्ति दस्तकारी अथवा छोटे उघोगो में लगे हुए है, सांस्कृतिक आधार पर भारतीय ग्रामीण समुदाय में समरूपता नहीं पाई जाती।
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