आश्रम व्यवस्था क्या अर्थ, परिभाषा और इसके प्रकार है
Aasharm vyavastha kya hai artha
Paribhasha or prakar
- आश्रम व्यवस्था
ब्रह्मचार्य गृहस्थ, वानप्रस्थ, और सन्यास ये चार आश्रम कहलाते हैं श्रम जीवन को सफल बनाने के कारण आश्रम कहा जाता है धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष इन चार पदार्थों की प्राप्ति के लिए चार आश्रमों का सेवन सब मनुष्य के लिए उचित है।
- आश्रम का अर्थ:
आश्रम शब्द श्रम धातु से बना है जिसका अर्थ होता है। परिश्रम करना या उधोम (उत्पादन) करना से अर्थात् आश्रम का तात्पर्य ऐसी क्रिया स्थल से है जहाँ कुछ दिनसमय ठहर कर व्यक्ति माध्यम से उधम करता है।
आश्रम का शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से कहा जा सकता है कि भाषा या विश्रार करने का एक साधन है। जहां पर कुछ समय तक आपके आप में आविशयक गुणों का विकास करके व्यक्ति अपने को आगे के लिए तैयार करता है।
परिभाषा
- डॉ. प्रभु -
आश्रम जीवन के अंतिम लक्ष्य, मोक्ष प्राप्ति हेतु व्यक्ति द्वारा की जाने वाली यात्रा के मार्ग में बढ़ने वाला मनोरंजन स्थल है
- महर्षि व्यास जी -
महाभारत में व्यास जी नेे बताया है कि जीवन के चार विश्राम स्थल या आश्रम व्यक्तित्व के विकास की 4 सीढ़ियां हैं इन पर क्रम सेे चढ़ते हुए व्यक्ति को ब्रह्मम प्राप्त करता है।
- आश्रम के प्रकार:
आश्रम चार प्रकार के होते है
- 1. ब्रह्मचार्यश्रम
- 2. गृहस्थ आश्रम
- 3. वानप्रस्थ आश्रम
- 4. संस्कार आश्रम
- ब्रह्मचार्य आश्रम - ब्रह्मचर्य का अर्थ योनिक संयम से भी लगाया जा सकता है ब्रह्मचार्य दो शब्दों से बना है ब्रह् + चार ब्रह्म का मतलब धर्म और चार्य का मतलब अनुसरण या चलाना, करना अर्थात ब्रह्मचार्य का अर्थ हुआ धर्म के मार्ग पर चलना या अनुसरण करना।
- गृहस्थ आश्रम - गृहस्थ आश्रम 25 वर्ष की आयु तक व्यक्ति शारीरिक व मानसिक दृष्टि से इतना सामर्थ्य हो जाता है की वह जीवन में अर्थ और काम की उचित साधना विभिन्नन परिवार व सामाजिक दायित्व दायित्व का निर्वाह कर सकती है: इस आयु तक व्यक्तित आपकी शिक्षा पूर्ण कर सकती है। विवाह करके गृहस्थी में प्रवेश करता है। उनका यही २५ से ५० वर्ष का हिस्सा ग्रस्त आश्रम कहलाता हैै।
गृहस्थ आश्रम में ही पंच यज्ञ संपन्न होते हैं
- ब्रह्म यज्ञ
- देव यज्ञ
- मृत्यु यज्ञ
- अतिथि यज्ञ
- वानप्रस्थ आश्रम - यह ग्रस्त आश्रम के बाद की स्थिति है मनु के अनुसार गृहस्थ आश्रम व्यतीत करने के पश्चात जब व्यक्ति के बाल पकड़ जाए, चेहरे पर झुर्रियां दिखाई पड़ने लगे उसके पोत्र उत्पन्न हो जाए और तब वह विषयों पर उस समय तक कम का आश्रय ले पाता है।
यदि उसकी पत्नी उसके साथ जाना चाहे तो ले जाओ अन्यथा देयता पर छोड़ दे उसे अपने साथ कोई भी ग्रह संपत्ति नहीं होनी चाहिए।
अपने साथ अग्निहोत्र और उसकी सामग्री के बारे में अपने ग्राम का त्याग करें। जटा, दाढ़ी, मूछ और नख धारण करें और प्रात: सांझ स्नान करें। शाक, मूल और फल आदि से यज्ञ करता रहा होना शाक, पुष्प, फल और मूल का सेवन करें साधारण वानप्रस्थ को बस्तियों में केवल शिक्षा के लिए ही रहना चाहिए वर्षा के अतिरिक्त वानप्रस्थ को किसी ग्राम में एक से अधिक रात्रि के लिए विश्राम नहीं करना चाहिए। ।
मनु के अनुसार -
वानप्रस्थी को नित्य स्वध्याय में लगा रहना चाहिए, सुख दुःख, मान धैर्य को करना चाहिए सबसे मित्रा का भाव रखना चाहिए, मन को वश में रखना चाहिए, दान देना चाहिए और सभी जीवों पर दया करना चाहिए।
- सन्यास आश्रम -
वास्तव में सन्यासी वह है जिसने सभी इच्छाओं और विषय वासनाओं का पूर्णत: त्याग कर दिया हो। संयासी को खुशी दुख, लाभ हानि आदि से लोभ नहीं होना चाहिए वह सभी मानव जाति और जीवो का कल्याण सोचता है भय, क्रोध, नंदा, हर्ष, विषाद और रागद्वेष से मुक्त होता है।
Very good information..bs kuch or detail me likhe.. actually mere pas subject he sociology..so, muje or detail me pdhna tha.
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