जाति किसे कहते है अर्थ परिभाषा और विशेषता
Jaati kise kahate hai artha paribhasha or visheshata।
जाति
जाति - जाति जात: संस्कृति के शब्द से बना है।
जात: का अर्थ है उत्पन्न होना या पैदा होने से हैपरिभाषा
1. मजूमदार एवं मदाम - जाति एक बंद वर्ग है2. कुले - वर्ग जब पूर्णतया वंशानुक्रम अनुवांशिकता पर आधारित होता है उसे हम जाति कहते हैं ।
इस परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि - कि जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है, जिसकी सदस्यता जन्म पर आधारित है और जो अपने सदस्यों पर खान - पान, विवाह - पेशा और सामाजिक सहवास सम्बन्धी अनेक प्रतिबन्ध लागू करती है ।
जाति की विशेषताएं -
1. समाज का खंडनात्मक विभाजन - एक जाति के सदस्यों की सामुदायिक भावना संपूर्ण समुदाय के प्रति न होकर अपनी ही जाति तक सीमित होती है ।
प्रत्येक जाति की एक जाति - पंचायत होती है जो जाति के सदस्यों पर नियंत्रण रखती है और उनसे जातीय नियमो का उल्लंघन करने पर जुर्माना किया जाता है और कभी कभी उसे जाति से बहिष्कृत भी कर दिया जाता है ।
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2. उच्चता एवं निम्नता का संस्तरण - समाज में सभी जातियों की सामाजिक स्थिति सामान्य नहीं है उनमें ऊंचे - नीचे का एक संस्तरण अथवा उतार- चढ़ाव पाया जाता है।
ऊंचे- नीच की व्यवस्था में ब्रह्मणों का स्थान सबसे ऊंचा है
ओर शूद्र का स्थान सबसे नीचा, क्षत्रिय एवं वैश्य उनके मध्य में है। जन्म पर आधारित होने के कारण इस संस्करण में स्थिता एवं दृढ़ता पाई जाती है ।3. भोजन और सामाजिक सेवा पर प्रतिबंध - सहवास पर प्रतिबंध जाति व्यवस्था में जातियों के परस्पर भोजन एवं व्यवसाय से संबंधित अनेक निषेध पाए जाते हैं ।
प्रत्येक जाति के ऐसे नियम है कि सदस्य किस जाति के यहां कच्चा- पक्का तथा फलाहार भोजन कर सकते हैं किस के हाथों का बना भोजन कर सकते हैं एवं किस के यहां पानी पी सकते हैं किस के साथ बैठकर हुक्का- बीड़ी पी जा सकती है किस के यहां धातु या मिट्टी के बर्तनों का उपयोग अपने लिए जा सकता है, आदि।
सामान्य: ऊंची जातियों के द्वारा बनाया गया भोजन निम्न जातियां स्वीकार कर लेती हैं, किंतु निम्न जातियों द्वारा बनाया गया कच्चा या कभी-कभी पक्का भोजन भी उच्च जातियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जाता है ।
4. परंपरागत व्यवसाय का चयन - जाति का एक परंपरागत व्यवसाय होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है। कई जातियों के नाम से ही उनकी व्यवसाय का बोध होता है प्रत्येक जाति यह चाहती है कि उसके सदस्य निर्धारित जातिगत व्यवस्था ही करें।
अन्य जातियों के लोग भी एक व्यक्ति को अपना जातीय व्यवस्था बदलने से रोकते हैं किंतु कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जैसे कृषि, व्यापार एवं सेना में नौकरी आदि इनमें सभी जातियों के व्यक्ति काम करते हैं ।
5. विवाह पर प्रतिबंध - जाति की एक मुख्य प्रमुख विशेषता यह है की प्रत्येक जाति अथवा उपजाति में विवाह करती है । जाति या उपजाति से बाहर विवाह करने वाले को जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है ।
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6. जन्मजात सदस्यता - जाति की सदस्य जन्मजात होती है।
एक व्यक्ति का जिस जाति में जन्म होता है मृत्युपर्यंत उसी में बना रहता है। शिक्षा, धर्म, व्यवसाय एवं गुणों में वृद्धि करने से जाति परावर्तित नहीं की जा सकती ।
निष्कर्ष - जाति की इन विशेषताओं में वर्तमान समय में बहुत कुछ बदलाव आया है जिसके परिणाम स्वरुप जाति के संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक स्वरूप में परिवर्तन हुए हैं ।
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