थर्स्टीन वेबलनी के ' दृष्टि आर्कषण उपभोग के नियम tharstin vebalni ke Drashti akarshan upbhog ke niyam
थर्स्टीन वेबलनी के ' दृष्टि आर्कषण उपभोग के नियम '
' दृष्टि आर्कषण उपभोग के नियम '
यह नियम
उस पद्धति की ओर
संकेत करता है। जिसके अनुसार धनी विलासी-वर्ग
दूसरों को दिखाने के लिए अपने धन की आवश्यकता से अधिक खर्च करते हैं। इस
प्रकार का खर्च धन अपव्यय या बर्बादी ही होता है।
कुछ भी हो, धनी विलासी-वर्ग अपने
धन का प्रदर्शन भोजन, पोशाक , निवास
स्थान, फर्नीचर आदि पर
अधिकाधिक व्यय और उनके आवश्यक उपभोग के दूब करते हैं। इस
प्रकार का उपभोग दूसरों की दृष्टि को
आकर्षित करता है और उसका परिणाम यह होता है कि दूसरों की निगाहों में इस प्रकार का
उपभोग करने वालों की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। दृष्टि –आकर्षक
उपभोग का एक प्रधान उद्देश्य अपने
सम्मान को बढ़ाना होता है। मनमानी वस्तुओं का
उपभोग स्वयं ही सम्मान का द्योतक होता है। साथ
ही, उच्कोटि के आभूषणों और
सामाजिक वस्तुओं, सजावट की चीजों के
वस्त्र आदि के उपभोग के द्वारा न केवल दूसरों की दृष्टि आर्कषण की जाती है, बल्कि
उसके आत्मसम्मान और सामाजिक सम्मान दोनो ही बढ़ते हैं। दृष्टि
आर्कषण उपभोग का सिद्धांत आधुनिक युग के सामान्य नियमों की ओर संकेत करता है।
Jaati kise kahate hai artha paribhasha or visheshata।
Dharm ka artha paribhasha or visheshtaye
Aasharm vyavastha kya hai artha Paribhasha or iske prakar
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