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आत्महत्या का सिद्धांत aatmhatya ka sidhant

दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धांत aatmhatya ka sidhant

    आत्महत्या के सिद्धांत के प्रतिपादक में दुर्खीम का स्थान सर्वोपरि है इसका कारण यह है कि दुर्खीम ने आत्महत्या के सिद्धांत का प्रतिपादक सामाजिक परिवेश में किया है।
 दुर्खीम पहला समाजशास्त्री है, जिसने आत्महत्या के सिद्धांतो  का प्रतिपादन समाजशास्त्री संदर्भ में किया है। 
दुर्खीम में अपनी "The suicide" पुस्तक में किया है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1897 में हुआ था। 
 
परिभाषा दुर्खीम -   आत्महत्या अपनी इच्छा से जानबूझकर आत्महनन की क्रिया है।



  दुुर्खीम के आत्महत्या का सिद्धांत का निष्कर्ष -
   
1. आत्महत्या की संख्या जनसंख्या की दृष्टि से प्रतिवर्ष लगभग एक समान रहती है। 

2. आत्महत्याएं सर्दियों की अपेक्षा गर्मियों में अधिक होती है। 

3. आत्महत्याएं स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषो द्वारा अधिक होती है।

4 . जहां तक आयु का संबंध है कम आयु में आत्महत्याएं कम होती है और अधिक आयु में अधिक होती हैं। 

5. ग्रामीण जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या की तुलना में आत्महत्या की दर निम्न होती है। 

6. आम जनसंख्या की तुलना में सैनिकों द्वारा आत्महत्याएं अधिक होती है। 

7. कैथोलिक की अपेक्षा प्रोटेस्टेंट धर्म के अधिक आत्महत्या करते हैं। 

8. विवाह की तुलना में अविवाहिक अधिक आत्महत्या करते है।

9. जनसंख्या के अनुपात की आत्महत्या दर लगभग समान होती है। 

आत्महत्याएं  (suicide) 
      
            ( a) अह्मवादी आत्महत्याएं 
                   (Egoistic suicides )

             (b) परार्थमय परार्थमय आत्महत्या करने 
                      (Altruistic suicide)
                          
                 ( c) अव्यवस्थित/प्रभवविहिन आत्महत्याएं 
                            ( Anomin suicide)    

                             (d मिश्रित स्वरूप 
                                 (Combination)

आत्महत्या के प्रकार  

     दुर्खीम ने आत्महत्या के तीन प्रकार बताए हैं जो निम्नलिखित है। 
1. स्वार्थमय आत्महत्या -   इस प्रकार की आत्महत्या में स्वार्थ या अहम का तत्व प्रमुख रूप से पाया जाता है इसमें व्यक्तिवाद की भावना प्रबल हो जाती है। और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया जाने लगता है व्यक्ति और समाज को जोड़ने में सामाजिक संबंधों का महत्वपूर्ण योग है, जब ये संबंध शिथिल पड़ जाते हैं, व्यक्ति स्वेच्छा से कार्य करता है सामाजिक नियंत्रण कमजोर हो जाता है, सामाजिक एकमत का नाश हो जाता है। व्यक्ति अकेलापन में अपना अधिक विलीन हो जाता है कि दूसरों से सवेथा अलग हो जाता है जो व्यक्ति जो व्यक्ति अत्यंत एकाकीपन में पड़ जाते हैं और उनके लिए आत्महत्या आसान हो जाती है।
 आधुनिक युग में इस प्रकार आत्महत्याएं बढ़ रही है।


2. परार्थमय आत्महत्या -  इस प्रकार की आत्महत्या तब पाई जाती है जब व्यक्ति और समूह के बीच अत्यंत घनिष्ठ और निकट का संबंध होता है। इस प्रकार की आत्महत्याएं उस समाज में पाई जाती है। जहां सामाजिक स्थिरता की मात्रा अधिक होती है। इस प्रकार की आत्महत्या उस समाज में जहां समूहवाद की भावना प्रबल होती है, व्यक्तिवाद इस प्रकार की आत्महत्या उस समाज में अधिक होती है जहां समूहवाद की भावना प्रबल होती है, व्यक्तिवाद को महत्व नहीं दिया जाता है।  जब व्यक्ति ही समाज के साथ अभिन्न हो जाता है कि समाज में अपने आपको विलीन कर देता है समाज से भिन्न वह अपना अस्तित्व नहीं समझता है, तो इस प्रकार की आत्महत्याये होती है। देश के लिए मर मिटने वाले युद्ध में शत्रु के साथ लड़ते हुए प्राण दे देने वाले, समुदाय के लिए हर समय प्राण न्योछावर करने वाले व्यक्तियों की आत्महत्या इसी कोटि में आती है।  
दुर्खीम ने परार्थवादी आत्महत्याओं को निम्न तीन प्रकार से विभाजित किया है।
1. व्रत था तथा रोगियों वृद्धि तथा रोगी पुरुष पुरुषों द्वारा  आत्महत्याए। 
2. अपने पतियों की व्यक्तियों का स्त्रियों द्वारा आत्महत्याए। 
3. शासक  की मृत्यु पर समर्थकों द्वारा आत्महत्या।


3. अस्वाभिक आत्महत्या -  इस प्रकार की आत्महत्याएं सामाजिक परिस्थितियों का परिणाम होती है समाज का संतुलन जब एकाएक समाप्त हो जाता है, ऐसी अवस्था में जो व्यक्ति समाज की बदली हुई परिस्थितियों से अपना समाजस्य नहीं कर पाते हैं, वे आत्महत्या कर बैठते हैं। जैस बैंकों के फेल हो जाने से या व्यापार में नुकसान हो जाने से जो आत्महत्याये की जाती हैं।
  आत्महत्या का कारण सिर्फ दरिद्रता नहीं है, पर यह वह गंभीर स्थिति है जो सामाजिक असंतुलन के कारण होती है। पराजित व्यक्ति पराजय स्वीकार करना नहीं चाहता धनी व्यक्ति दिवालिया बनकर नहीं रहना चाहता तथा मर्यादापूर्ण व्यक्ति अपमानित नहीं होना चाहता। ऐसी स्थिति में आत्महत्या ही एकमात्र सहारा रह जाता है।

 आत्महत्या के कारण  

             
                 दुर्खीम के अनुसार अनेक कारक और परिस्थितियां मनुष्य के व्यक्तित्व को विकृत कर देते हैं तथा उसे अपने जीवन को समाप्त करने के लिए विवश कर देते हैं। अधिकांश रूप से गैर- सामाजिक कारकों के अंतर्गत मनोवैज्ञानिक कारण तथा सामाजिक कारकों में मुख्यत: आर्थिक तथा पारिवारिक कारण ही आत्महत्याओं के लिए अधिक उत्तरदायी होते हैं दुर्खीम ने आत्महत्या के जिन प्रमुख कारकों का उल्लेख किया है वह निम्न है।

 1.  गैर- सामाजिक कारक - 
                                       दुर्खीम ने आत्महत्या के लिए निम्न तीन गैर सामाजिक कारणों की विवेचना की है। 

a)  मनोवैज्ञानिक कारक - दुर्खीम ने अपने अध्ययन में पांच  मनो- शारीरिक असंतुलन को आत्महत्या के कारणों में सम्मिलित किया है जो निम्न प्रकार है।

1)  पागलपन- संबधी - एक प्रकार के पागलपन (insanity) जैसे प्रवृत्ति का विकास हो जाता है जो व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है।

2)  उदासीनता- संबंधी -  इन कारणों में व्यक्ति की चिंता, अत्याधिक दुख,मन पर आघात, निराशा,आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।
 इस प्रकार की मानसिक दशा भी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करती हैं।

3)  निश्चयपूर्ण- सम्बन्ध -  व्यक्ति को मृत्यु अथवा मृत्यु की आज अंदेशा से ही भयभीत कर देते है। बिना किसी कारण के व्यक्ति अपनी मृत्यु का पूर्व निश्चित कर लेता है। ऐसी अवस्था में वह आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है। 

4)  प्रेरणात्मक तत्कालीन - यह आत्महत्याएं भी अकारण की जाती है। और स्वविकसित होती है। इसके पीछे कोई बौद्धिक  कारण नहीं होता है। किसी भयानक वस्तु को देख लेने मात्र से ही व्यक्ति आत्महत्या की ओर प्रेरित हो जाता है। 

b)  जैविकिय कारक - जैविकिय कारक में दुर्खीम ने आत्महत्या के लिए निम्न कारकों को उत्तरदायी माना है। 
 
1)    वंशानुक्रम - आत्महत्या का कारण है। अगर पिछली पीढ़ियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति थी, तो इसका प्रारंभ पीढ़ियों पर भी पड़ता है। इन पीढियों के कुछ वंशानुगत बीमारियां होती है जो व्यक्ति की आत्महत्या के लिए प्रेरित करती हैं। 

2)  प्रजातीय - अपनी प्रजाति रक्त समूह और शरीर रचना की कुछ विशेषताएं व्यक्ति को आत्महत्या की ओर  प्रेरित करते हैं।सती प्रथा को इसी प्रथा के अंतर्गत रखा जा सकता है।

3)  लिंग और आयु -  लिंग और आयु का भी आत्महत्या से घनिष्ठ संबंध है। पुरुष स्त्रियों की तुलना में अधिक आत्महत्याये करते हैं। इसके साथ ही बालों और वृद्धों की तुलना में युवक और प्रौढ़ व्यक्ति अधिक आत्महत्या करते हैं। 

C ) प्राकृतिक कारक -  निम्न प्राकृतिक कारक व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं। 

1) प्राकृतिक कारकों में पहला कारण जलवायु है जिसके अंतर्गत ठंडा या गर्म वातावरण हवाओ तथा वर्षा आदि को सम्मिलित किया जाता है।

 2)    ऋतुएं भी आत्महत्या का कारण होती है क्योंकि मानव जीवन पर ऋतुएं का एक अलग स्थान होता है। ऋतुएं में होने वाला परिवर्तन व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है।

3)  तापमान का भी आत्महत्या से संबंध है, जब तापमान अधिक ऊंचा हो जाता है तो आत्महत्याओं की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
 

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