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भारतीय ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं bhartiya gramin samuday ki visheshta

भारतीय ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं

bhartiya gramin samuday ki visheshta


प्रत्येक समाज का निर्माण विभिन्न इकाइयों के योग से होता है। यह इकाइयां एक दूसरे से संबंधित होती है। समाज के व्यवहार संबंधी प्रति मनुष्य की समझ के लिए इस इकाइयों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक होता है।


भारत ग्रमो का देश है, जहां प्रत्येक गांव की पहली भौगोलिक, परिस्थितियाँ हैं। यहां संरचना की दृष्टि से अधिक कई प्रकार के गांव पाए जाते हैं, जिनकी नैतिक पृष्ठभूमि, भाषा, विचार व व्यवहार की पद्धति भी एक दूसरे से भिन्न होती है। भारतीय ग्रामों के ढांचे को समझने के लिए उन इकाइयों का विवेचन आवश्यक है जिनके आधार पर ग्रामीण समाज व्यवस्थित है।

 

भारतीय ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं bhartiya gramin samuday ki visheshta

भारतीय ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं 


 भारत ग्रामो का देश है जिसके अधिकांश जनसंख्या गांव में निवास करते हैं।  


विशेषताएं - 

 

 1. संयुक्त परिवार -  संयुक्त परिवारों में यहां पति- पत्नी व बच्चों के परिवार की तुलना में ऐसे परिवार अधिक पाए जाते हैं। जिनमें तीन या अधिक पीढ़ियो के सदस्य एक  स्थान पर रहते हैं। इनका भोजन संपत्ति और पूजा- पाठ का साथ साथ होता है। ऐसे परिवारों का संचालन परिवार के वयोवृद्ध व्यक्ति द्वारा होता है। वही परिवार के आंतरिक और बाहरी कार्यों के लिए निर्णय लेता है। परिवार के सभी सदस्य उनकी आज्ञा का पालन करते हैं, उनका आदर सम्मान करते है। संयुक्त परिवार भारत में अति प्राचीन है। 

 

2.  कृषि मुख्य व्यवसाय - भारतीय ग्रामों में निवास करने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। 70 से 75 प्रतिशत  तक लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि द्वारा ही अपना जीवन यापन करते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि गावो में अन्य व्यवसाय नहीं होते है। चटाई, रस्सी, कपड़ा, मिट्टी के एवं धातु के बर्तन बनाना, वस्त्र बनाना, गुण बनाना अनेक व्यवसायो का प्रचलन गांवो में है। शिल्पकारी जातियां अपने- अपने व्यवसाय करती है तो सेवाकरी जातियां कृषि एवं अन्य जातियों की सेवा करती है।


3.  जजमानी प्रथा -  प्रत्येक जाति एक निश्चित परंपरागत व्यवसाय करती है। इस प्रकार जाति प्रथा ग्रामीण समाज में श्रम विभाजन का अच्छा उदाहरण पेश करती है। सभी जातीय परस्पर एक दूसरे की सेवा करती है। ब्राह्मण विवाह, उत्सव एवं त्योहार के समय दूसरी जाति के यहां अनुष्ठान करवाते हैं। तो नाई बाल काटने, धोबी कपड़े धोने, ढोली ढोल बजाने, चमार जूटे बनाने, जुलाहा कपड़े बनाने का कार्य करते हैं। जजमानी प्रथा के अंतर्गत एक  जाति दूसरी जाति की सेवा करती है और उसके बदले में सेवा प्राप्त करने वाली जाति भी उसकी सेवा करती है अथवा वस्तुओं के रूप में भुगतान प्राप्त करती है। एक किसान परिवार में विवाह होने पर नई, धोबी,  चमार, सुनहार, सभी अपनी -अपनी सेवा प्रदान कराते हैं। बदले में उन्हें कुछ नगद, भोजन, वस्त्र और फसल के समय अनाज, आदि दिया जाता है। 


4. जाति प्रथा - जाति प्रथा जाति के आधार पर गांवों में सामाजिक  संस्तरण पाया जाता है। जाति एक सामाजिक संस्था और समिति दोनों ही है। जाति की सदस्यता जन्म से निर्धारित होती है। प्रत्येक जाति का एक परंपरागत व्यवसाय होता है। जाति के सदस्य अपनी ही जाति में विवाह करते हैं, जाति की एक पंचायत होती है जो अपने सदस्यों के जीवन को नियंत्रित करती है। अपने सदस्यों के लिए खान-पान एवं सामाजिक सहवास के नियम भी बनाती है। जाति के नियमों का उल्लंघन करने पर जातियों को जाति से बहिष्कार, दंड अथवा जुर्माना, आदि की सजा भुगतान होती है। 


6. ग्राम पंचायत -  प्रत्येक गांव में एक गांव पंचायत होती है। इसका मुखिया गांव का मुखिया होता है। ग्राम पंचायत अति प्राचीन कला काल से भारत में विघमन रही है। ग्राम पंचायत का मुख्य कारण गांव की भूमि का परिवारो में वितरण, सफाई, विकास कार्य और ग्रामीण विवादों को निपटाना है। 


7. भाग्यवादी - भारतीय गांवों के निवासियों में शिक्षा का अभाव है। वे अंधविश्वासी और भाग्यवादी है। उनका दृढ़ विश्वास है कि व्यक्ति चाहे कितना ही प्रयत्न करें किंतु उसे उतना ही प्राप्त होगा जो उसके भाग्य में लिखा है। 


8. सरल एवं सादा जीवन - भारत के ग्रामवासी सादा जीवन व्यतीत करते हैं। उनमें ठगी चतुराई और धोखेबाजी के स्थान पर सच्चाई ईमानदारी और अपनत्व की भावना विघमान होती है। उनके भोलेपन का सेठ- साहूकार लाभ उठाकर उनका शोषण करते रहे है।



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